झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी रांची के डिपार्टमेंट ऑफ़ एग्रीकल्चर साइंस द्वारा किसानों को उन्नत कृषि के लाभों से अवगत कराने के लिए प्रशिक्षण, जनजागरण और किसान गोष्ठी आयोजित की जाती है। कृषि में तकनीक और लाभदायक फसलों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी ने नामकुम कैंपस में विश्व स्तरीय हाइड्रो फोनिक्स लैब स्थापित है। इसके साथ ड्रिप एरिगेशन, मल्चिंग, पोली हाउस, स्प्रिंकलर सिंचाई और अल्ट्रा डेंसिटी तकनीक से कृषि कार्य किया जाता है।
ड्रिप सिंचाई की जानकारी देने और उसके लाभों से अवगत करता आलेख किसानों के जनहित में जारी:
एग्रीकल्चर एक्सपर्ट का मानना है की परंपरागत खेती के तरीकों में भू गर्भ जल का 85 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। एक क्विंटल धान पैदा करने में ढाई लाख लीटर पानी खर्च होता है। किसान टपक सिंचाई पद्धति को अपनाकर पानी की बर्बादी रोक सकता है। टपक सिंचाई को बूंद बूंद सिंचाई या ड्रिप सिंचाई के नाम से भी जाना जाता है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में किसानों से एक सीधे संवाद में किसानों को खेती की लागत घटाकर उत्पादन बढ़ाने के टिप्स देते हुए कहा था कि सूक्ष्म सिंचाई पद्धति से खेती की लागत घटाकर उत्पादन बढ़ाते हुए फसलों में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। पानी की कमी से जूझते किसानों की कृषि लागत घटाने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे पानी की तो बचत होती ही है, सिंचाई का खर्च कम हो जाता है और किसान का लाभ भी बढ़ जाता है।
- ड्रिप सिंचाई में उपयोगी उपकरण :
- मोटर पंप – पानी की आपूर्ति के लिए
- फ़िल्टर यूनिट – पानी को छानने में उपयोगी
- फ्रटीगेशन यूनिट – पानी में खाद मिलाने की वयवस्था
- प्रेशर गेज – पानी के दाब को मापने का यंत्र
खेत में टपक विधि का इस्तेमाल करने के लिए पौधों की दूरी निर्धारित होना आवश्यक है। ऊपर से लगे पाइप में सुराख के जरिए पानी की बूंद बराबर पौधों पर गिरती रहती है। इसके लिए खेत में एक बड़ी टंकी लगाई जाती है, जबकि फव्वारा विधि में मोटर से पानी सप्लाई के जरिए पौधों को फुहारें दी जाती हैं। टपक विधि में प्रति हेक्टेयर 1.15 लाख रुपये लागत आती है। इसमें सरकार की ओर से 90 फीसदी तक अनुदान मिलता है।
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टपक सिंचाई के लाभ :
- टपक सिंचाई में जल उपयोग दक्षता 95 प्रतिशत तक होती है जबकि पारम्परिक सिंचाई प्रणाली में जल उपयोग दक्षता लगभग 50 प्रतिशत तक ही होती है।
- इस सिंचाई विधि में जल के साथ-साथ उर्वरकों को अनावश्यक बर्बादी से रोका जा सकता है।
- टपक विधि से सिंचित फसल की तीव्र वृद्धि होती है फलस्वरूप फसल शीघ्र परिपक्व होती है।
- खर-पतवार नियंत्रण में अत्यन्त ही सहायक होती है क्योंकि सीमित सतह नमी के कारण खर-पतवार कम उगते हैं।
- टपक सिंचाई विधि अच्छी फसल विकास हेतु आदर्श मृदा नमी स्तर प्रदान करती है।
- इस सिंचाई विधि में कीटनाशकों एवं कवक नाशकों के धुलने की संभावना कम होती है।
- लवणीय जल को इस सिंचाई विधि से सिंचाई हेतु उपयोग में लाया जा सकता है।
- इस सिंचाई विधि में फसलों की पैदावार 150 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
- पारम्परिक सिंचाई की तुलना में टपक सिंचाई में 70 प्रतिशत तक जल की बचत की जा सकती है।
- इस सिंचाई विधि के माध्यम से लवणीय, बलुई एवं पहाड़ी भूमियों को भी सफलतापूर्वक खेती के काम में लाया जा सकता है।
- टपक सिंचाई में मृदा अपरदन की संभावना नहीं के बराबर होती है, जिससे मृदा संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
- ड्रिप सिंचाई खेती करने पर किसानों को सब्सिडी मिलती है। सब्सिडी दर अलग अलग राज्यों में अलग अलग है।
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