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युवाओं के लिए 12वीं के बाद कृषि क्षेत्र में हैं करियर के कई मौके

किसी देश की अर्थव्यवस्था का आंकलन उस देश की खेती-किसानी की स्थिति से होता है। देश की 70% जनसंख्या तो रोजगार के क्षेत्र में खेती-किसानी से ही जुड़ी है। कृषि में भी आधुनिकता आई है, नवीन तकनीकों का प्रसार हुआ है। इन सब के बावजूद भी आज इस क्षेत्र में युवा शक्ति की कमी है यानि युवाओं के लिये यहां कॅरियर की अथाह सम्भावना है। खास तौर से अध्ययन और स्वरोजगार के क्षेत्र में विशेष सम्भावना है। अगर आप 12वीं क्लास पास कर चुके हैं और सोच रहे हैं कि किस क्षेत्र में करियर बनाएं तो कृषि का क्षेत्र आपके लिए बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। कृषि के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए छात्र डिप्लोमा, ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और पीएचडी कर सकते हैं।

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बीएससी-एग्रीकल्चर कोर्स से जुड़ी जानकारी:

12 वीं के बाद कृषि में स्नातक 4 साल का कोर्स है, जिसको बीएससी-एग्रीकल्चर/ बीएससी–एग्रीकल्चर (ऑनर्स) कोर्स कहते हैं। इस कोर्स को प्रोफेशनल कोर्स की भी मान्यता है। इसके लिए योग्यता 12 वीं में एग्रीकल्चर या बायोलॉजी से उतीर्ण होना है। बीएससी-एग्रीकल्चर कोर्स में हम एग्रीकल्चर के विभिन्न विषयों का अध्ययन वैज्ञानिक पद्धति से करते हैं, जिसमे सेमेस्टर प्रणाली की भूमिका महत्वपूर्ण है।इस दौरान समस्त एग्रीकल्चरल टेक्नोलॉजी के विषयों पर गहन अध्ययन, प्रायोगिक और सैद्धांतिक रूप से जानकारी प्राप्त कि जाती है।

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कृषि की पढ़ाई करें मिलेंगे कई मौके:

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एग्रीकल्चर के विषय :

फार्म मैनेजमेंट, प्रोडक्शन और प्रोटेक्शन, इकोनॉमिक्स, बायोलॉजिकल साइंसेज, नेचुरल एंड सोशल साइंसेज, इंजीनियरिंग और फ़ूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी । एग्रीकल्चरल फील्ड में बायोलॉजी, कैमिस्ट्री, फिजिक्स, मैथ्स और स्टेटिस्टिक्स के बेसिक प्रिंसिपल्स का भी इस्तेमाल किया जाता है।

कृषि से जुड़े कोर्स:

कृषि में ग्रेजुएशन, पोस्ट-ग्रेजुएशन, पीएचडी, डिप्लोमा एवं सर्टिफिकेट कोर्स उपलब्ध हैं. ग्रेजुएशन के बाद आप सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में बेहतरीन पदों पर जॉब हासिल कर सकते हैं। अगर इस क्षेत्र में कुछ बेहतर करना चाहते हैं तो हायर एजुकेशन के लिए मास्टर्स और पीएचडी करके भविष्य संवार सकते हैं। इसके अलावा हायर एजुकेशन लेने के बाद एजुकेशन के क्षेत्र में करियर बना सकते हैं. लेक्चरर बनकर आप भविष्य बना सकते हैं. वहीं, आप इस क्षेत्र में रिसर्च करके कृषि वैज्ञानिक बनकर देश की तरक्की में अपना अहम योगदान दे सकते हैं।

एमएससी एग्रीकल्चर करें और अनुसंधान को बढ़ावा दें :

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कृषि क्षेत्र की कुछ प्रमुख नौकरियां:

हमारे देश में एग्रीकल्चरल फील्ड में समुचित ट्रेनिंग लेने के बाद बतौर सरकारी और निजी कृषि कर्मचारी जैसे फार्म मैनेजर, सुपरवाइजर, सॉइल साइंटिस्ट, एंटोमोलॉजिस्ट, पैथोलोजिस्ट, हॉर्टिकल्चरिस्ट, एग्रोनोमिस्ट, मौसम वैज्ञानिक, पशुपालन विशेषज्ञ, एग्रीकल्चरल इंजीनियर, एग्रीकल्चरल कम्प्यूटर इंजीनियर, एग्रीकल्चर फ़ूड साइंटिस्ट, एग्रीकल्चर रिसर्च ऑफिसर, एग्रीकल्चर ऑफिसर, प्लांट फिजियोलॉजिस्ट, सर्वे रिसर्च एग्रीकल्चर इंजीनियर, एनवायर्नमेंटल कंट्रोल्स इंजीनियर, माइक्रोबायोलॉजिस्ट, फ़ूड सुपरवाइजर, रिसर्चर, एग्रीकल्चर क्रॉप इंजीनियर, बी कीपर, फिशरी मैनेजर, बोटेनिस्ट, सॉयल इंजीनियर, सॉयल एंड प्लांट साइंटिस्ट, लेब टेक्नीशियन और मीडिया मैनेजर आदि के रूप में रोजगार की प्राप्ति कर सकते हैं। इसके अलावा भी सरकारी और निजी क्षेत्र में विषेशज्ञों की नियुक्तियां होती रहती है।

प्रमुख जॉब प्रोवाइडर:

भारत सरकार व राज्य सरकारों के कृषि से संबद्ध सभी विभाग, आईसीएआर के सभी अनुसंधान केंद्र व स्टेट एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, कृषि विज्ञान केंद्र, स्टेट एग्रीकल्चर रिसर्च स्टेशन, मृदा जाँच केंद्र, राष्ट्रीय बीज निगम, केंद्रीय कृषि पशुपालन मंत्रालय व कृषि विभाग, राज्य कृषि व पशुपालन मंत्रालय व विभाग, जल एवं पर्यावरण मंत्रालय, मौसम विभाग आदि प्रमुख हैं। आज कल युवा नौकरी क जगह अपने स्टार्टअप्स और कृषि से जुड़े बिजनेस को गंभीरता से ले रहे है।

एग्रीकल्चर अंतिम वर्ष के छात्रों का रावे वाइवा संपन्न

झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी के बीएससी एग्रीकल्चर (ऑनर्स) के फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स का रावे एक्सटर्नल वाइवा गुरुवार को संपन्न हो गया। मौखिक पूछताछ और प्रस्तुति में 60 विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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छात्रों ने बिहार और झारखण्ड के कृषि विज्ञान केंद्रों पर ग्रामीण कृषि कार्य का अनुभव साझा किया। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय कीडॉ. निबा बाड़ा के समक्ष विद्यार्थियों ने अपने कार्यों और अनुभवों को प्रस्तुत किया।

Scope of BSC Agriculture course:

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ग्रामीण कृषि कार्य अनुभव (RAWE) कृषि में स्नातक होने वाले अंतिम वर्ष के छात्रों कि एक प्रमुख गतिविधि है। कृषि स्नातकों के पेशेवर कौशल का सम्मान करते हुए उनमें आत्मविश्वास पैदा करना रावे को शुरू करने का प्रमुख उद्देश्य है। इस कार्यक्रम को आठ मॉड्यूल में विभाजित किया गया है जिसमें छात्रों को कृषि और ग्रामीण विकास के वर्तमान और उभरते अवसरों और चुनौतियों से अवगत कराया जाता है।

Learning by Doing – RAWE Experience

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फार्म प्लानिंग, वाटरशेड डेवलपमेंट प्रोग्राम, एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम, रिसर्च स्टेशन,केवीके प्रशिक्षण एवं गांव में रहकर व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करना शामिल है। ग्रामीण प्रवास से उन्हें किसानों को फिर से खोजने का एक दुर्लभ अवसर प्राप्त होता है।

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सीबीएसई:10वीं-12वीं मूल्यांकन योजना को नया रूप। परीक्षा में ज्यादा होंगे एमसीक्यू प्रश्न

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) की दसवीं व बारहवीं की परीक्षा में अब अधिक योग्यता आधारित अधिक बहुविकल्पीय (एमसीक्यू) प्रश्न पूछे जाएंगे। वहीं, लघु व दीर्घ प्रश्नों के पूर्णांक कम होंगे। बोर्ड ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की सिफारिशों के आधार पर यह बदलाव किए हैं।

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केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने पिछले दिनों नेशनल कॅरिकुलम फ्रेमवर्क (NCF) का प्री-ड्राफ्ट जारी किया था जिसमें 12वीं की बोर्ड परीक्षा को दो टर्म में लेने का प्रस्ताव है।10वीं-12वीं के नतीजों में पिछली कक्षाओं के अंक जोड़ने की सिफारिश भी की गई है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ध्यान में रखकर तैयार इस फ्रेमवर्क में साइंस, कॉमर्स और आर्ट्स के विभाजन को भी खत्म करने का प्रस्ताव है।

B.Sc Agriculture as a career choice?

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इसरो के पूर्व चेयरमैन के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति ने मसौदा जारी कर सभी हितधारकों के सुझाव मांगे हैं। शिक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा, यह एनसीएफएसई का पूर्व मसौदा है, जिसपर अभी नेशनल स्टीयरिंग कमेटी में कई दौर का विचार विमर्श बाकी है। अलग-अलग क्षेत्रों के साझेदारों के सुझाव एनएससी को विभिन्न बदलावों और दृष्टिकोणों के बारे में समालोचनात्मक रूप से विचार करने में मदद करेंगे।

Mining Engineering: Courses, institutes and job roles

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इधर सीबीएसई ने सत्र 2023-24 के लिए मूल्यांकन योजना को नया रूप दिया है। नई व्यवस्था अगले साल से नौवीं-दसवीं व 11वीं-12वीं की परीक्षाओं पर लागू होगी।10वीं में योग्यता आधारित बहुविकल्पीय प्रश्नों का वेटेज 50 फीसदी और बारहवीं में 40 फीसदी होगा। दसवीं में लघु और दीर्घ उत्तर प्रकार के प्रश्नों का वेटेज 30 प्रतिशत होगा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नों का वेटेज 20% होगा। बारहवीं कक्षा में वस्तुनिष्ठ प्रश्न 20% वेटेज के साथ अनिवार्य रूप से एमसीक्यू में होंगे। 12वीं में लघु उत्तरीय व दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों का वेटेज 40% होगा। बोर्ड ने 2023-24 की परीक्षाओं के लिए सैंपल पेपर और प्रत्येक विषय के प्रश्न पत्रों के डिजाइन को जारी किया है।

केंचुआ पालन व्यवसाय से हर महीने करें 25 से 30 हजार रुपए की कमाई

झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी से बीएससी एग्रीकल्चर की पढाई कर रहे विशाल कुमार ने अपनी पहचान खुद गढ़ी है । उनके गाँव वाले उन्हें कृषि उद्यमी के तौर पर पहचानने लगे है। बिहार के गया के टेकारी गांव के रहने वाले विशाल फ़िलहाल रांची में रहकर पढाई करते है। बीएससी एग्रीकल्चर फाइनल ईयर के इस स्टूडेंट ने केंचुआ खाद ( वर्मी कंपोस्ट ) का प्रशिक्षण लेने के बाद उद्यमशील बनकर कार्य करने का फैसला लिया ।

विशाल बताते है ” साल 2021 में कृषि विज्ञान केंद्र, जहानाबाद में आयोजित चार दिवसीय केंचुआ खाद प्रशिक्षण में मुझे शामिल होने का मौका मिला । प्रशिक्षण के बाद केंद्र के वैज्ञानिकों ने मुझे इसके आर्थिक लाभ और बाजार के बारे में अवगत कराया। ट्रेनिंग पूरी करने के बाद मैं इसमें जुट गया । पहले मैंने 1 बेड (एक क्यारी) से काम शुरू किया और आज 26 बेड से वर्मी कंपोस्ट उत्पादन कर रहा हूँ। ”

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वर्मी कंपोस्ट एक उत्तम जैव उर्वरक है। इसे केंचुआ खाद भी कहा जाता है। यह खाद केंचुआ और गोबर की मदद से बनाई जाती है। इसे लगभग डेढ़ महीने में आसानी से तैयार किया जा सकता है। यह खाद वातावरण को प्रदूषित नहीं होने देती है। इस खाद में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। जो फसलों को तेजी से विकास में मदद करता है और मिट्टी को बेकार नहीं होने देता है। वर्मी कंपोस्ट बनाने की मुख्य तीन विधियां हैं – प्लास्टिक या टटिया विधि ,पिट विधि और बेड विधि।

खेतिहर किसानों के बीच बेड विधि ज्यादा लोकप्रिय है। इस विधि में कई बेड बनाकर वर्मी कंपोस्ट खाद तैयार की जाती है। शुरुआत में पहले बेड में ही केंचुए डालने की आवश्यकता होती है। एक बेड का खाद बन जाने के बाद केंचुए स्वतः ही दूसरे बेड में पहुंच जाते हैं। इसके बाद पहले बेड से वर्मी कम्पोस्ट अलग करके छानकर भंडारित कर लिया जाता है।

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काम शुरू किये हुए दो वर्ष हो चुके हैं और अब उनके पास केंचुआ खाद को खरीदने वाले 20 गांव के किसान है जो उनकी बनाई कंपनी “फेटिडा आर्गेनिक” से खाद खरीदते है।

केंचुआ खाद और इसके प्रयोग करने से मिट्टी को पहुँचने वाले लाभ से अवगत कराने में मुझे शुरुवाती दिनों में थोड़ी दिक्कत हुई लेकिन फिर मेरे द्वारा बनाये गए किसानों के विडियो क्लिप्स जिसमें किसानों ने इसके प्रयोग को लेकर अपनी सकारात्मक राय दी थी वह बेहद उपयोगी साबित हुई । इसके बाद मेरे पास खाद के आर्डर भी ज्यादा आने लगे और मैंने फेटिडा आर्गेनिक नाम से अपनी एक कंपनी भी बना ली ।

केंचुआ खाद उत्पादन में लागत और बिक्री के बारे में पूछने पर बोलते हुए विशाल कहते है “एक बेड तैयार करने में 2200 से 2300 रुपए की लागत आती है। और लाभ प्रति बेड 2000 रूपए हो जाता है।

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भविष्य से जुड़े गए सवालों पर जवाब देते हुए विशाल कहते है ” अगले कुछ महीनों में मेरी पढाई पूरी हो जायेगी फिर मैं पूरा ध्यान अपने स्टार्टअप पर दूंगा। केंचुआ खाद की बिक्री मुझे उत्साहित करती है अब मैंने अपना ध्यान पपीते की खेती की तरफ डाला है। रेड लेडी पपीते की नस्ल 786 के 400 पौधे मैंने खेतों में लगाया हैं । किसानों को साल भर नियमित आय प्राप्त हो इसके लिए एक मॉडल खेती तकनीक को तैयार करने पर काम कर रहा हूँ । मैं अपने स्टार्टअप , खाद की बिक्री और बाजार खोजने की जगह ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुँच कर इसके बदलावों से अवगत करने का काम करता रहता हूँ। इससे मुझे नया बाजार भी मिलता है और किसानों के पास तकनीक और जानकारी भी पहुँचती है।जैविक खेती को बढ़ावा देना और मिट्टी संरक्षण मेरा लक्ष्य है”

12वीं के बाद, बिना नीट के कर सकते हैं ये मेडिकल कोर्स

हर साल लाखों छात्र मेडिकल फील्ड में करियर बनाने के लिए नीट परीक्षा देते हैं। लेकिन बिना नीट परीक्षा के भी मेडिकल फील्ड में करियर बनाया जा सकता है। नीट परीक्षा 17 जुलाई 2022 को आयोजित की हुई है जिसमें करीब 18 लाख उम्मीदवार शामिल हुए। लेकिन क्या आप जानते हैं मेडिकल फील्ड में करियर बनाने के लिए नेशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट (NEET) एग्जाम पास होना जरूरी नहीं। बिना नीट एग्जाम क्वालीफाई किए भी आप मेडिकल फील्ड में अपना अच्छा करियर बना सकते हैं।

अगर आप फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी या मैथ्स (PCB/PCM) विषयों के साथ 12वीं पास हैं तो आप बिना नीट एग्जाम के कई मेडिकल कोर्सेज में अपना करियर बना सकते हैं।

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बीएससी एग्रीकल्चर साइंस

BSc एग्रीकल्चर B.Sc Agriculture – Jharkhand Rai University, Ranchi (jru.edu.in) 4 साल का अंडर ग्रेजुएट बैचलर डिग्री का कोर्स है।इस कोर्स के बाद आप एग्रोनॉमिस्ट, एग्रीकल्चर साइंटिस्ट और एग्रीबिजनेस जैसे पदों पर काम कर सकते हैं।

फार्मेसी

फार्मेसी में दवा विज्ञान के अंतर्गत आने वाले विभिन्न विषयों का अध्ययन किया जाता है। ड्रग सेफ्टी, रिसर्च, मेडिकल केमिस्ट्री,इंडस्ट्रियल फार्मेसी और कई अन्य का अध्ययन फार्मेसी कोर्स में होता है। जो फार्मासिस्ट बनना चाहते हैं, वे 12वीं के बाद D.PHARMACY Diploma in Pharmacy (D.Pharm) – Jharkhand Rai University, Ranchi (jru.edu.in) का विकल्प चुन सकते हैं।
B.Pharm के लिए भी अहर्ता 12वीं पास है लेकिन यह 4 वर्षीय कोर्स है। इसके लिए उम्मीदवारों को नीट में उपस्थित होना और अर्हता पाना अनिवार्य नहीं होता है। B.Pharm एक स्नातक डिग्री कार्यक्रम है जहां छात्रों को फार्मेसी की मूल बातें सिखाई जाती हैं। B.Pharm Bachelor in Pharmacy (B.Pharm) – Jharkhand Rai University, Ranchi (jru.edu.in) करने के बाद छात्रों के लिए कॅरियर के कई अवसर हैं, सरकारी से लेकर निजी क्षेत्र तक या फिर खुद का व्यवसाय स्थापित कर सकते हैं। उम्मीदवार केमिकल टेक्नीशियन, ड्रग इंस्पेक्टर, हेल्थ इंस्पेक्टर, फार्मासिस्ट आदि बनने के विकल्प को भी चुन सकते हैं।

फिजियोथेरेपी

फिजियोथेरेपी Bachelor of Physiotherapy (BPT) – Jharkhand Rai University, Ranchi (jru.edu.in) में भौतिक बलों जैसे कि ऊष्मा, बिजली, यांत्रिक दबाव और यांत्रिक बलों के माध्यम से उपचार किया जाता है। फिजियोथेरेपी को नीट के बिना किए जा सकने वाले चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र का संतोषजनक और लाभदायक कॅरियर माना जाता है। बैचलर ऑफ फिजियोथेरेपी एक स्नातक कार्यक्रम है। BPT Physiotherapy Lab. – Jharkhand Rai University (JRU), Ranchi में स्नातक करने के बाद, उम्मीदवार के पास कई कॅरियर विकल्प होंगे जैसे कि स्वास्थ्य और फिटनेस क्लिनिक, विशेष स्कूल, औद्योगिक स्वास्थ्य के लिए उद्योग, फिजियोथेरेपिस्ट के रूप में सेवा देना।

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इएलपी : क्रिटिकल थिंकिंग और मैनेजेरियल स्किल्स का विकास

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Admission Open for session 2022

स्टूडेंट्स को अच्छी एजुकेशन देने का सबसे बढ़िया तरीका है कि उसको कमरे की चारदीवारी से बाहर निकाल कर वास्तविक चीजों से प्रयोग करके सिखाया जाए। इससे उनमें क्रिटिकल थिंकिंग और खुद ही निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। यह सब होता है – एक्स्पेरीएन्शल लर्निंग से। एक्स्पेरीएन्शल लर्निंग यानी प्रयोग करके सीखना पढ़ाने का बहुत सरल तरीका है। कृषि स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल छात्रों के लिए अंतिम वर्ष के दो सेमेस्टर में एक्स्पेरीएन्शल लर्निंग प्रोग्राम (ELP ) चलाये जाते है।

झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी, राँची द्वारा संचालित कृषि स्नातक प्रतिष्ठा 4 वर्षीय पाठ्यक्रम है। 12 वीं के बाद इंजीनियरिंग और मेडिकल में नहीं जाने वाले छात्रों में यह पसंदीदा कोर्स है। फिफ्थ डीन कमिटी की अनुशंसाओं के तहत इस पाठ्यक्रम को प्रायोगिक, गुणवत्तापूर्ण और नेशनल एग्रो इंडस्ट्री की मांग के अनुरूप तैयार किया है। नियमित कक्षा, सेमेस्टर सिस्टम, समय पर परीक्षा और परिणाम का प्रकाशन के साथ अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए एक्स्पेरीएन्शल लर्निंग प्रोग्राम और रूरल एग्रीकल्चर वर्क एक्सपीरियंस नियमित तौर पर करवाए जाते है। पढ़ाई के दौरान सेमिनार, वर्कशॉप, एजुकेशनल टूर के अलावा प्रतिष्ठित संस्थानों में इंटर्नशिप भी आयोजित करवाया जाता है।

एक्स्पेरीएन्शल लर्निंग प्रोग्राम (ELP) :
इएलपी फाइनल ईयर के विद्यार्थियों का व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम है। यह 6 महीनों तक चलता है और इस दौरान उन्हें खेती बारी से जुड़े कार्य सफलतापूर्वक पुरे करने होते है।

झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी के रांची, नामकुम प्रखंड स्थित स्थायी कैम्पस में बीएससी एग्रीकल्च ऑनर्स पाठ्यक्रम संचालित किया जाता है। 20 एकड़ का विस्तृत भू-भाग में विद्यार्थियों को इएलपी से जुड़े कार्य करने के लिए आवंटित है। इससे जुड़े कार्यों में मार्गदर्शन देने के लिए विशेष शिक्षक नियुक्त होते है जो मार्गदर्शन देने का कार्य करते है। विभाग में सभी शिक्षकों का पदस्थापन स्थायी रूप से किया गया है जो कृषि विषय में डॉक्टरेट कि डिग्री प्राप्त है। पाठ्यक्रम का निर्माण भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) एवं पांचवीं डीन रिपोर्ट कि अनुसंशाओं के अनुसार किया गया है।

इएलपी के लिए यूनिवर्सिटी से मिलने वाली सुविधाएँ :

  • प्रत्येक विद्यार्थी को स्पष्ट निर्देशित भू भाग
  • कृषि कार्य हेतु खाद- बीज की उपलब्धता
  • सिंचाई की सुविधा
  • कृषि कार्य हेतु ट्रैक्टर की सुविधा
  • खरपतवार / निराई गुड़ाई के लिए संकल्पित कार्यबल
  • विषय और कार्य पर जानकारी देने के लिए अनुभवी शिक्षक का मार्गदर्शन
  • प्राप्त उपज को बाजार तक ले जाने की सुविधा
ENTREPRENEURSHIP-OPPORTUNITIES

EASY ENTREPRENEURSHIP OPPORTUNITIES IN MUSHROOM CULTIVATION

A three-day workshop on ‘Pre & Post Harvest Management of Mushroom’ was recently organized by the Department of Agriculture, Jharkhand Rai University. Scientists from leading organizations were guest speakers at the workshop. More than 100 agriculture science students attended the sessions. The workshop was an opportunity for students to learn cultivation of mushrooms and entrepreneurship opportunities arising out of it. The key objective of the seminar was to facilitate a better understanding of mushroom cultivation technology and usage of modern farming techniques in a practical setup.

Mushroom cultivation production techniques have been an important part of the ELP (Experiential Learning Programmes) for B.Sc & M. Sc Agriculture Science students at Jharkhand Rai University.

In the past, the university has organized regular study tours to ICAR, DMR (Directorate of Mushroom Institute) at Solan, Himachal Pradesh.

Day 1
Dr. Ajit Kumar Jha- Sr. Scientist, (Plant Pathology) ICAR-RCER FSRCHPR-Ranchi, spoke in detail about Production Technology in Mushrooms. Dr. Jha explained the mushroom varieties and production time, familiarising students from spawning method preparation to its management.

Day 2
Dr. Anuradha Srivastava – Scientist (Food Technology) DMR, ICAR, Solan spoke about Post-harvest Management of Mushrooms as they have a low shelf-life. Hence, it’s important to know the proper Handling and value additions. She also spoke about setting up a grading, packaging, and canning unit for the mushroom. Different modes of transport for harvested mushrooms as per distance were also discussed.

Day 3
Unlike vegetables or cereal crops, mushrooms do not require much manual labour, financial investment, or time. Mushrooms have a short growth cycle and their cultivation is a good option to generate income and become financially independent.

Some of the key thoughts on Mushroom cultivation as an Entrepreneurial Venture, shared by Dr. Santosh Kumar Asst. Professor cum Junior Scientist (Plant Pathology), MBAC Saharsa on the 3rd day of the workshop are mentioned below –

  • Use of SMS (Spent Mushroom Substrate) to use as Organic Manure
  • Recycling of SMS to use as organic manure
  • Organic fertilizer (Improve physical & chemical properties of soil)
  • Bioremediation of contaminated soil and water
  • Management of Soil-borne plant pathogens

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Nutritional Value of Mushrooms
Mushrooms are a delicacy in Jharkhand. Whether it is Oyster or button mushroom or the rare Rugda- mushroom varieties have been an integral part of Jharkhand’s food culture of both tribal as well as non-tribal communities.

Low in calories, fat and cholesterol-free, mushrooms contain over a dozen minerals plus vitamins that include copper, potassium, magnesium, zinc and a number of B vitamins such as folate. Mushrooms are also high in antioxidants – selenium and glutathione – substances believed to protect cells from damage, reduce chronic disease and inflammation.

ड्रिप सिंचाई खेती से पानी की बचत के साथ किसानों को सब्सिडी का लाभ और मुनाफा ज्यादा

झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी रांची के डिपार्टमेंट ऑफ़ एग्रीकल्चर साइंस द्वारा किसानों को उन्नत कृषि के लाभों से अवगत कराने के लिए प्रशिक्षण, जनजागरण और किसान गोष्ठी आयोजित की जाती है। कृषि में तकनीक और लाभदायक फसलों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाता है। झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी ने नामकुम कैंपस में विश्व स्तरीय हाइड्रो फोनिक्स लैब स्थापित है। इसके साथ ड्रिप एरिगेशन, मल्चिंग, पोली हाउस, स्प्रिंकलर सिंचाई और अल्ट्रा डेंसिटी तकनीक से कृषि कार्य किया जाता है।

ड्रिप सिंचाई की जानकारी देने और उसके लाभों से अवगत करता आलेख किसानों के जनहित में जारी:

एग्रीकल्चर एक्सपर्ट का मानना है की परंपरागत खेती के तरीकों में भू गर्भ जल का 85 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। एक क्विंटल धान पैदा करने में ढाई लाख लीटर पानी खर्च होता है। किसान टपक सिंचाई पद्धति को अपनाकर पानी की बर्बादी रोक सकता है। टपक सिंचाई को बूंद बूंद सिंचाई या ड्रिप सिंचाई के नाम से भी जाना जाता है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में किसानों से एक सीधे संवाद में किसानों को खेती की लागत घटाकर उत्पादन बढ़ाने के टिप्स देते हुए कहा था कि सूक्ष्म सिंचाई पद्धति से खेती की लागत घटाकर उत्पादन बढ़ाते हुए फसलों में ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। पानी की कमी से जूझते किसानों की कृषि लागत घटाने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे पानी की तो बचत होती ही है, सिंचाई का खर्च कम हो जाता है और किसान का लाभ भी बढ़ जाता है।

    ड्रिप सिंचाई में उपयोगी उपकरण :

  • मोटर पंप – पानी की आपूर्ति के लिए
  • फ़िल्टर यूनिट – पानी को छानने में उपयोगी
  • फ्रटीगेशन यूनिट – पानी में खाद मिलाने की वयवस्था
  • प्रेशर गेज – पानी के दाब को मापने का यंत्र

खेत में टपक विधि का इस्तेमाल करने के लिए पौधों की दूरी निर्धारित होना आवश्यक है। ऊपर से लगे पाइप में सुराख के जरिए पानी की बूंद बराबर पौधों पर गिरती रहती है। इसके लिए खेत में एक बड़ी टंकी लगाई जाती है, जबकि फव्वारा विधि में मोटर से पानी सप्लाई के जरिए पौधों को फुहारें दी जाती हैं। टपक विधि में प्रति हेक्टेयर 1.15 लाख रुपये लागत आती है। इसमें सरकार की ओर से 90 फीसदी तक अनुदान मिलता है।

    टपक सिंचाई के लाभ :

  1. टपक सिंचाई में जल उपयोग दक्षता 95 प्रतिशत तक होती है जबकि पारम्परिक सिंचाई प्रणाली में जल उपयोग दक्षता लगभग 50 प्रतिशत तक ही होती है।
  2. इस सिंचाई विधि में जल के साथ-साथ उर्वरकों को अनावश्यक बर्बादी से रोका जा सकता है।
  3. टपक विधि से सिंचित फसल की तीव्र वृद्धि होती है फलस्वरूप फसल शीघ्र परिपक्व होती है।
  4. खर-पतवार नियंत्रण में अत्यन्त ही सहायक होती है क्योंकि सीमित सतह नमी के कारण खर-पतवार कम उगते हैं।
  5. टपक सिंचाई विधि अच्छी फसल विकास हेतु आदर्श मृदा नमी स्तर प्रदान करती है।
  6. इस सिंचाई विधि में कीटनाशकों एवं कवक नाशकों के धुलने की संभावना कम होती है।
  7. लवणीय जल को इस सिंचाई विधि से सिंचाई हेतु उपयोग में लाया जा सकता है।
  8. इस सिंचाई विधि में फसलों की पैदावार 150 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
  9. पारम्परिक सिंचाई की तुलना में टपक सिंचाई में 70 प्रतिशत तक जल की बचत की जा सकती है।
  10. इस सिंचाई विधि के माध्यम से लवणीय, बलुई एवं पहाड़ी भूमियों को भी सफलतापूर्वक खेती के काम में लाया जा सकता है।
  11. 11.

  12. टपक सिंचाई में मृदा अपरदन की संभावना नहीं के बराबर होती है, जिससे मृदा संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।
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  14. ड्रिप सिंचाई खेती करने पर किसानों को सब्सिडी मिलती है। सब्सिडी दर अलग अलग राज्यों में अलग अलग है।
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स्प्रिंकलर सिंचाई में पानी की खपत हो कम और किसानों को मिले भरपूर फसल

झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी, रांची के द्वारा उन्नत कृषि को बढ़ावा देने के लिए कई कार्य किये जा रहे है इनमें शामिल है स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक के जरिये किया जाने वाला कृषि कार्य। इस तकनीक से कैसे खेती करते हुए ज्यादा फसल प्राप्त करें इसका लाभ आस-पास रहने वाले किसानो को भी मिल रहा है। उन्नत कृषि को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा ड्रिप एरिगेशन, मल्चिंग, पोली हाउस, स्प्रिंकलर सिंचाई का प्रचार प्रसार भी किया है।

किसानों को उन्नत फसल और तकनीक की जानकारी प्रदान करने में यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ़ एग्रीकल्चर साइंस के अनुभवी शिक्षकों का लाभ भी किसानों को मिलता रहता है। झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी नामकुम कैंपस में बेहत उन्नत तकनीक का हाइड्रोफोनिक्स लैब भी स्थापित है जहाँ स्टूडेंट्स को प्रशिक्षण पूरा करने पर प्रमाणपत्र भी उपलब्ध करवाया जाता है।

स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक ड्रिप सिंचाई की तरह ही बूंद बूंद सिंचाई तकनीक है।इसे बौछारी सिंचाई भी कहा जाता है। इसमें पानी पौधों के जड़ों में नहीं जाकर वर्षा के फुहारों की तरह गिरता है। यह सिंचाई करने का आधुनिक तरीका है। इसमें छिद्र वाली नालियों से जल का प्रवाह किया जाता है और फिर फुहारों की तरह पानी की बूंदें पौधों पर गिरती है। इसमें मुख्य तत्व मोटर पंप, पाइप फ़िल्टर ,पाइप की मुख्य नली, बौछार करने वाली पाइप की नली और पानी फेखने वाला फुहारा है। इनकी सहायता से ही स्प्रिंकलर कार्य करता है।

स्प्रिंकलर का पानी छिड़कने वाला नॉजील हमेशा घूमता रहता है जिससे आस -पास के पौधों पर पानी की फुहार पड़ती रहती है। स्प्रिंकलर सेट को एक जगह से दूसरी जगह आसानी से ले जाया जा सकता है। इसका मतलब है इसे एक खेत से दूसरे खेत में आसानी से शिफ्ट कर सकते है और सिंचाई के काम को कर सकते है।

बौछार सिंचाई प्रणाली के मुख्य घटक :

बौछारी सिंचाई पद्धती मे मुख्य भाग पम्प, मुख्य नली, बगल कि नली, पानी उठाने वाली नली एंव पानी छिडकाव वाला फुहारा होता है |
बौछार सिंचाई प्रणाली कि क्रिया विधि :

बौछारी सिंचाई में नली में पानी दबाव के साथ पम्प द्वारा भेजा जाता है जिससे फसल पर फुहारा द्वारा छिडकाव होता है | मुख्य नली बगल कि नलियों से जुडी होती है | बगल कि नालियों में पानी उठाने वाली नली जुडी होती है |

पानी उठाने वाली नली जिसे राइजर पाइप कहते है इसकी लम्बाई फसल कि लम्बाई पर निर्भर करती है | क्योंकी फसल कि उंचाई जितनी रहती है राइजर पाइप उससे ह्मेशा उंचा रखना पड़ता है | इसे सामान्यत: फसल कि अधिकतम लम्बाई के बराबर होना चाहिए | पानी छिडकाव वाले हेड घुमने वाले होते है जिन्हें पानी उठाने वाले पाइप से लगा दिया जाता है |पानी छिडकने वाले यंत्र भूमि के पुरे क्षेत्रफल पर अर्थात फसल के उपर पानी छिडकते है | दबाव के कारण पानी काफी दूर तक छिडका जाता है जिससे सिंचाई होती है |

    स्प्रिंकलर सिंचाई की विशेषताएँ :

  • सिंचाई के दौरान मजदूरों पर होने वाले खर्च में कमी।
  • इस तकनीक की मदद से पानी के साथ -साथ समय की बचत होती है।
  • आवश्यकता के अनुसार फसल को पानी एक या दो दिन छोड़ कर दिया जाता है।
  • इस तकनीक का उपयोग उबर खाबर जमीन और कम पानी उपलब्धता वाली भूमि में किया जाता है।
  • यह सिंचाई तकनीक आसान और बेहद कम खर्च में उपलब्ध है।
  • इस तकनीक की मदद से काम पानी में ज्यादा भूमि पर सिंचाई की जा सकती है।
  • इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है की पानी की फुहारें पौधों की पत्तियों पर पड़ती है जिनसे पत्ते साफ़ रहते है और उन्हें अपना भोजन बनाने में आसानी होती है। इस कारण से पौधों का विकास भी होता है।
  • छिटकावा विधि से बोई गयी फसलों में यह तकनीक बेहतर मानी जाती है।
  • स्प्रिंकलर सिंचाई (Sprinkler Irrigation) के लाभ :
  • सतही सिंचाई मे पानी खेत तक पहुँचने मे 15-20 प्रतिशत तक अनुपयोगी रहता है |
  • सिंचाई में एकसा पानी नही पहुँचता जबकी बौछारी सिंचाई से संचित क्षेत्रफल 1.52 गुना बढ जाता है अर्थात इस विधि से सिंचाई करने पर 25-50 प्रतिशत तक पानी की सीधे बचत होती है |
  • जब पानी वर्षा कि भांती छिडकाया जाता है तो भूमि पर जल भराव नही होता है जीससे मिट्टी कि पानी सोखने कि दर कि अपेक्षा छिडकाव कम होने से पानी के बहने से हानी नही होती है |
  • जिन जगहों पर भूमि ऊची-नीची रहती है वहाँ पर सतही सिंचाई संभव नहीं हो पाती उन जगहों पर बौछारी सिंचाई वरदान साबित होती है |
  • बौछारी सिंचाई बलुई मिट्टी एव अधिक ढाल वाली तथा उची-नीची जगहों के लिए उपयुक्त विधि है | इन जगहो पर सतही विधि से सिंचाई नही कि जा सकती है |
  • इस विधि से सिंचाई करने पर मिट्टी में नमी का उपयुक्त स्तर बना रहता है जिसके कारण फसल कि वृद्धी उपज और गुणवत्ता अच्छी रहती है |
  • इस विधि मे सिंचाई के पानी के साथ घुलनशील उर्वरक, कीटनाशी तथा जीवनाशी या खरपतवारनाशी दवाओं का भी प्रयोग आसानी से किया जा सकता है|
  • पाला पड़ने से पहले बौछारी सिंचाई पद्धती से सिंचाई करने पर तापक्रम बढ जाने से फसल को पाले से नुकसान नही होता है |
  • पानी कि कमी, सीमित पानी कि उपलब्धता वाले क्षेत्रो मे दुगुना से तीन गुना क्षेत्रफल सतही सिंचाई कि अपेक्षा किया जा सकता है|
    स्प्रिंकलर सिंचाई का रखरखाव एवं सावधानियाँ :

  • सिंचाई के प्रयोग के समय एवं प्रयोग के बाद परीक्षण कर लेना चाहिए और कुछ मुख्य सावधानियाँ रखने से स्प्रिंकलर सेट अच्छी तरह चलता है |
  • प्रयोग होने वाला सिंचाई जल स्वच्छ तथा बालू एवं अत्यधिक मात्रा घुलनशील तत्वो से युक्त नही होना चाहीए |
  • उर्वरको, फफुंदी / खरपतवारनाशी आदी दवाओं के प्रयोग के पश्चात सम्पूर्ण प्रणाली को स्वच्छ पानी से सफाई कर लेना चाहीए |
  • प्लास्टिक वाशरो को आवश्यकतानुसार निरीक्षण करते रहना चाहिए और बदलते रहना चाहीए |
  • रबर सील को साफ रखना चाहीए तथा प्रयोग के बाद अन्य फिटिंग भागों को अलग कर साफ करने के उपरान्त शुष्क स्थान पर भण्डारीत करना चाहीए |

TOP TEN Career Opportunities in the field of Agriculture Sciences

Agriculture is as old as human civilization. The Indian economy is heavily dependent on Agriculture as it contributes to 16.5% of India’s gross domestic product (GDP) and employs the largest (43%) of the Indian workforce. Over the years, India has undergone a quantum shift from basic farming to more efficient, sustainable, and productive farming.

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More importantly, with the growing population and rise in urban and rural income there is a huge demand for food, making it critical to have a modern system of agricultural education that can produce highly skilled and competent manpower to address the challenging tasks of catering to the industry requirements.

Some interesting facts about Indian agricultural Industry:

  • India has 20 agri-climatic regions and presence of all 15 major climates, encouraging cultivation of variety of different crops across the world
  • India possesses 46 of the 60 soil types in the world.
  • India has the 10th largest arable land resource in the world
  • India is one of the largest producers of vegetables, fruits and flowers in the world
  • India is the largest producer of milk, second-largest of sugar & leading producer of coconut and spices. The spice market in India is valued at INR 40,000 crore (USD 5.87 billion) annually
  • Organic food is the next big thing and India ranks first in number of organic farmers and ninth in terms of area under organic farming
  • In 2019, India was the 9th largest exporter of agricultural products and the total value of exported agricultural products stood at $ 37.4 billion.
  • India’s agriculture technology can grow to $24.1 billion in 5 years
  • The current market size of agri-tech, including AI-based agri innovation start-ups in India, is nearly worth $ 204mn.
  • 2018 saw an inflow of over $1 bn in startups in India in agriculture

What a career in Agriculture can offer

Backed by Government initiatives like “Aatmanirbhar Bharat” & “Make in India” along with growing private sector investment, the overall scenario of agriculture as an industry has undergone a huge change in the past decade. As a result, agricultural education in India has also transformed & become responsive to the growing and changing needs of the society in general and aspirations of the farming community in particular. Let us discuss the exciting emerging career opportunities for aspirants in this field.

Here are the TOP TEN Career opportunities in the field of agriculture Sciences:

Agricultural engineering: There is a growing demand for agriculture engineers in India in both Govt. & private sector. Agricultural engineering is the branch of engineering that applies engineering science disciplines and technology practices to the efficient production and processing of food, feed, fiber and fuels. Agriculture Students can become agriculture engineer, agriculture inspector, agriculture specialist, farm manager, agronomist etc.
Top Employers: ICAR, FCI, ITC, Nestle, NABARD, Amul, CSIR, and Mother Dairy etc.

Food Processing: The Indian food retail market is expected to reach INR 61 lakh crore (US$ 894.98 billion) by 2020. The Indian food processing industry accounts for 32 per cent of the country’s total food market, one of the largest industries in India and is ranked fifth in terms of production, consumption, export and expected growth. There are various opportunities like Food Technologist, Research Scientist, Engineers and Bio-chemists etc. which can be explored.
Top Employers: Parle Agro, ITC Foods, Britannia, LT Foods, KRBL, Venky’s India, MTR Foods etc.

Horticulture: The field of horticulture holds ample scope both nationally and internationally. Horticulturists can find jobs in institutes of horticulture, in plantations, vegetable farms as well as fruit groves. Advancement in horticultural technology, increasing product demands and a growing export industry makes this a lucrative career option. Horticulture jobs include positions like project manager, landscape designer, horticulturist, pomologist, agriculture inspector, floriculturist, irrigation manager etc.
Top Employers: Adama India, Mcleod Russel India Ltd, Jain Irrigation Systems Ltd, Goodricke Group Ltd etc.

Forestry: As we all know that forest is a very important part of an ecosystem. Therefore, management of forest is required and is done by the foresters (forest professionals).The career opportunities are available in both public as well as in private sector. The public sector jobs includes work in zoological parks, wildlife ranges, Forest Dept., National Parks & sanctuaries etc.
Top Employers: Indian Council of Forestry Research and Education (ICFRE) and its affiliated institutes, AECOM India, IIFM etc.

Dairy Farming: India is the largest milk producer and the second largest milk products producer in the world leading to a plethora of career opportunities in dairy farming in the country.
Employment opportunities exist in both government and private sectors. The National Dairy Development Board (NDDB) is a key PSU in the field, however, with almost every state aping Amul’s ‘cooperative’ success, employment opportunities have increased manifold for technologists and managers, both in production and marketing. Entry of multinational giants like Nestle, Cadburys, Britannia, Kellogg’s, Heritage Foods, KFC, HUL, etc. has given a further boost to job opportunities.
Top Employers: Amul, Mother Dairy, Heritage Foods, Cadburys, KSE, Parag Foods etc.

Aquaculture: With its long coastline with rich biodiversity, India is the fourth largest producer of fish in the world offering great scope for Fisheries and aquaculture. Many career options exist in this field in both public and private sectors like Manager – aquaculture, Manager-fisheries, Culturist, consultant, technical staff etc.
Top Employers: BMR Group, Goldmarine Exports, Abad Fisheries, Avni Foods etc.

Poultry Farming: Growing demand for a low priced source of protein-rich nutrients, provided by eggs and chickens has led to a 20% annual growth to the Indian Poultry farming industry. Jobs from the sector can be taken up in various hatcheries, veterinary hospitals, pharmaceutical concerns, feed millers, and feed production companies.
Top Employers: Godrej Agrovet, Suguna Foods, Venkateshwara Hacheries etc.

Sericulture: The word ‘sericulture’ is derived from the Greek word ‘sericos’ which means ‘silk’ and the English word ‘culture’ meaning ‘rearing’. Sericulture refers to the conscious mass-scale rearing of silk producing organisms to obtain silk. India has the unique distinction of being the only country producing all the five kinds of Silk- Mulberry, Eri, Muga, Tropical Tasar and temperate (oak) Tasar. The job prospects comprise of sericulturist, serìculture Research, sericulture assistant, sericulture Inspector and supervisor etc.
Top Employers: State/District Khadi Boards, NABARD, Krishi Vigyan Kendra etc.

Research Science & Communication: You can pursue a career in research and communication as an agricultural researcher or a journalist. You can drive innovation for improving agricultural yields and sustainable production.
Top Employers: Indian Agriculture Research Institute, ICAR, Farmioc etc.

Agri-Entrepreneurs: According to a study by FICCI, agricultural start-ups are growing at 25 per cent Y-O-Y basis offering technological solutions for helping the Indian farm sector in keeping the food and farm supply. A large number of entrepreneurs in the country have turned entrepreneurs and have become quite successful.
Top Agri-Entrepreneurs: Agro Star, EM3 agri Services, Ninjacart, Crofarm, Farm Taaza, Cropln, Ugaao etc.