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पंचकोश कोश अवधारणा: उच्च शिक्षा में चरित्र निर्माण पाठ्यक्रम

चरित्र का निर्माण शिक्षा का आवश्यक अंग है। चरित्र-निर्माण से व्यक्तित्व का विकास होता है। चरित्र का निर्माण जन्म से ही आरम्भ हो जाता है। पहले मूल प्रवृत्यात्मक व्यवहार चरित्र-निर्माण में होती है। कालांतर में अर्जित की गई अच्छी तथा बुरी आदतों के द्वारा चरित्र एक निश्चित रूप लेने लगता है। “चरित्र की शिक्षा, ईमानदारी, निरन्तरता, सत्य, सहयोग आदि गुणों के विकास के लिए है।

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21वीं सदी की चुनौतियों से मुकाबले के लिए एनईपी-2020 के उद्देश्य बहुत उच्च और दूरगामी हैं। एनईपी-2020 का एक प्रमुख लक्ष्य विद्यार्थियों का चरित्र निर्माण है, ताकि शिक्षार्थियों के जीवन के सभी पक्षों और क्षमताओं का संतुलित विकास हो सके। भारतीय चिंतन परंपरा में चरित्र निर्माण और समग्र व्यक्तित्व विकास, विद्या या कहें कि शिक्षा का महत्वपूर्ण लक्ष्य माना जाता है। वर्तमान युग में चरित्र निर्माण और समग्र व्यक्तित्व विकास की जरूरत और बढ़ जाती है। युवाओं की इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखकर एनईपी-2020 के कार्यान्वयन की दिशा में मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम बनाए गए हैं।

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नई शिक्षा नीति का अनुपालन करते हुए झारखंड राय यूनिवर्सिटी रांची ने भी विद्यार्थियों के होलिस्टिक डेवलपमेंट (पंचकोश) को पाठ्यक्रम में शामिल किया है। इस पाठ्यक्रम को लाइफ स्किल के अंतर्गत शामिल करते इसे तीन भागों में बांटा गया है जिनमें चरित्र निर्माण, योग, सार्वभौमिक मूल्य और नैतिकता शामिल है।

मैकाले माडल की तरह ये कोरे सैद्धांतिक कोर्स नहीं होंगे, बल्कि प्राचीन भारतीय अध्ययन पद्धति या आधुनिक काल में महात्मा गांधी के मॉडल से प्रेरित सभी कोर्सों में प्रायोगिक अध्ययन कम से कम 50 प्रतिशत होगा। इन पाठ्यक्रमों को विज्ञान, कला और कॉमर्स आदि सभी के छात्र पढ़ सकते हैं। ये पाठ्यक्रम हमारे युवाओं में सामाजिक दायित्व का बोध और सेवा का भाव भरने के साथ उन्हें देश प्रेम का भाव भी विकसित करेंगे।

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युवाओं में बढ़ते असंतुलन, मानसिक तनाव और आक्रामकता आदि से निपटने में पंचकोश: होलिस्टिक डेवलपमेंट बहुत सहायक सिद्ध होगा। तैत्तिरीय उपनिषद में उल्लिखित ‘पंचकोश’ के आधार पर व्यक्तित्व-चरित्र का निर्माण युवाओं को एक नई दिशा देने का कार्य करेगा। योग: फिलासफी एंड प्रैक्टिस कोर्स भी आज के जटिल और तनावपूर्ण जीवन में बहुत उपयोगी सिद्ध होने वाला है।

अन्य कार्यों में भी भारतीय ज्ञान परंपरा के तत्वों को यथासंभव शामिल किया है। जैसे कांस्टीट्यूशनल वैल्यूज एंड फंडामेंटल ड्यूटीज वाले कोर्स में सेक्युलरिज्म के साथ-साथ सर्वधर्म समभाव की अवधारणा भी जोड़ी गई है। धर्म को लेकर हमारी संवैधानिक स्थिति सेक्युलरिज्म की अवधारणा के बजाय भारतीय सर्वधर्म समभाव की अवधारणा के ज्यादा अनुरूप है।

21वीं सदी में दुनिया में परचम लहराने को तैयार युवाओं का नया भारत आर्थिक रूप से तो तैयारी कर ही रहा है, लेकिन यह जरूरी है कि न्यू इंडिया संतुलित, चरित्रवान, सामाजिक दायित्व-बोध और राष्ट्र प्रेम के भाव से युक्त भी हो, तभी भारत पुन: जगद्गुरु बन पाएगा।