“Home is the starting place of hope and dreams.” अंग्रेजी की यह कहावत चरितार्थ होती दिख रही है।
राज्य के युवा बड़ी संख्या में अपने घरों की ओर लौट रहे है।ये वही युवा है जो कल तक पढ़ाई और प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के लिए बड़े शहरों की तरफ रुख़ करने से कतराते नहीं थे।
कोविड 19 और लंबे लॉक डाउन ने उन्हें फिर से घरों की तरफ मोड़ दिया है। अपने सपनों को आकार देने के लिए वे राज्य के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में नामांकन के लिए उत्साही नजर आते है।
‘इंडिया मूविंग’ अ ‘हिस्ट्री ऑफ माइग्रेशन’ दुनिया भर में माइग्रेशन को लेकर लिखी गयी चर्चित किताबें में बेस्ट मानी जाती है। प्रवासी मजदूरों की कहानी कहती यह किताब आज के समय में प्रासंगिक है।
प्रवासी मजदूरों के झुंड में एक झुंड उन युवा मस्तिष्कों का भी था जो अपने सपने साकार करने के लिए कोटा,दिल्ली,बैंगलोर और कितने ही सुदूर दक्षिण राज्यों में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने या किसी प्रतिष्ठित कॉलेज में एडमिशन की बाट जोहते ‘अपना टाइम आयेगा’ की सोच के साथ टिके हुए थे।
कोरोना वाइरस और लॉक डाउन सीरीज की आखरी कड़ी 4.0 के बाद सबकुछ सामान्य हो जाएगा यह कहना मुश्किल है।
स्टूडेंट्स की भीड़ और बेहतर भविष्य की तलाश के बीच कुछ सवाल खड़े है-
1. क्या घर से दूर पढ़ना मजबूरी है या फ़ैशन ?
2. राज्य बनने के 19 वर्षों के बाद भी झारखंड युवाओं के उम्मीदों पर क्यों खरा नहीं उतरा।
3. क्या झारखंड सच में तकनीकी शिक्षा के मामले में इतना पिछड़ा है?
4. नए विश्वविद्यालयों की स्थापना और निजी क्षेत्र के बड़े नामी- गिरामी संस्थाओं के बावजूद बाहर जाना वाकई जरूरी है भी या नहीं।
5. गरीब और मध्यम परिवारों के छात्रों के लिए मानक संस्थानों का अभाव है?
इन सारे सवालों जवाब भले हैं तर्कों के आधार पर कसौटियों पर कसे जाये। सच्चाई की तस्वीर थोड़ी धुंधली है और काफी कुछ बाजार के उस अनजाने हाथों की कैद में है जिनके बारे में एक छात्र या एक अभिभावक काफी कुछ नहीं जानता।
पाठ्यक्रम, संस्थान, ब्रांड, कैम्पस
पाठ्यक्रम, संस्थान, ब्रांड, कैम्पस और प्रचार अच्छी गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा पर भारी पड़ती है। जो दिखता है वही बिकता है। शिक्षा आज के समय मे इश्तेहार है,बाजार है और पढ़ने वाला छात्र मूकदर्शक है जिसके सामने मेनू में एक से बढ़कर एक ब्रोशर पेश किए जाते है।
अभी अभी 12वीं पास किया हुआ लड़का कितना परिपक्व होगा ? यह पता है इसलिए तो अभिभावक के लिए भी ऑफर है अलग से! खैर
हमारे प्रदेश में आईआईटी और आईआईएम है। एक्सएलआरआई और ज़ेवियर संस्थान है । 1केंद्रीय विश्वविद्यालय, 12 राज्य सरकार के विश्वविद्यालय और 15 निजी विश्वविद्यालयों वाला राज्य अपने छात्रों का प्रवास रोक नहीं पता है?
सरकारी संस्थानों के अलावा निजी संस्थानों ने पिछले कुछ वर्षों में राज्य में शिक्षा का अलख जगाने और माहौल बदलने का काम किया है। बिना सरकारी सहायता के तकनीकी और रोजगार परक शिक्षा के नए पाठ्यक्रम चलाये है।
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प्रवासी छात्रों के मन
कोविड 19 के इस लंबे समय ने एक बार फिर से बदलाव की बयार को तेज किया है, प्रवासी छात्रों के मन राज्य में रहकर पढ़ने और कुछ कर गुजरने का जज्बा देखने को मिल रहा है।
कोटा में रहकर पढ़ाई कर रहे सौरव 2 मई को कोटा से 1100 स्टूडेंट्स को लेकर रांची आने वाली ट्रेन में सवार थे । सौरव ने बातचीत के दौरान बताया ” अब रांची में रहकर ही परीक्षा की तैयारी करूँगा। दुबारा जाना शायद मुमकिन न हो पाये”।
दिल्ली में अपने भाई के साथ यूपीएससी की तैयारी करने वाली रुबीना भी कुछ यही ख्याल रखती है उनके अनुसार” यहाँ रहकर पहले अपने मास्टर्स करूँगी और डिजिटल मोड़ से यूपीएससी की तैयारी शुरू करूँगी लेकिन दुबारा लौटना मुमकिन नहीं लगता , काफी कुछ बदल गया है।
ऐसे कई युवा है जो अब अपना मन बना रहे है राज्य में रहने औऱ राज्य के संस्थानों में ही पढ़ने का। अब जरूरत है इन होनहारों के हाथों को थामने की और उनके संकल्प के साथ अपने संकल्प को जोड़ने की।
* तकनीकी शिक्षा के कई नए आयामों के साथ झारखंड राय विश्वविद्यालय,रांची इग्नाईटेड माइंडस को कह रहा है’ स्टार्ट इट अप’ । विशेष जानकारी के लिए लॉगइन करें – www.jru.edu.in
कॉल कर सकते है हेल्पलाइन नंबर 18001202546
आलेख:डॉ. प्रशांत जयवर्द्धन