जेआरयू: प्रैक्टिकल एजुकेशन पर है ज्यादा जोर

“सीइंग इज बिलिविंग” अंगेजी की इस कहावत का अर्थ है। “जो दिखाई पड़ता है विश्वास भी उसी पर होता है ” एजुकेशन सिस्टम भी अब अपनी पारंपरिक तकनीक को पीछे छोड़ते हुए इस कांसेप्ट पर काम कर रही है। पारंपरिक तौर पर इस प्रकार के एजुकेशन को प्रैक्टिकल एजुकेशन कहा जाता है। इस तकनीक में स्टूडेंट्स किसी भी स्ट्रीम का हो उसे अपने सब्जेक्ट से कनेक्ट करने के लिए वास्तविकता से अवगत कराया जाता है। यह धरातल कॉलेज का लैब- कंप्यूटर रूम या फिर किसी कला सम्बन्धी विषय का परिचय कराने के लिए किसी जगह का भ्रमण और उसका अध्ययनहो सकता है। एजुकेशनल टूर, विजिट, गेस्ट लेक्चर, वर्कशॉप, सेमिनार, इन्वाइटेड टॉक, सीम्पोसियम ये सारे माध्यम ऐसे है जिनके जरिये स्टूडेंट्स और फैकल्टी सब्जेक्ट के साथ डायरेक्ट इंटरैक्ट करते है। इस पुरे प्रोसेस में टीचर मीड- कम्युनिकेशन (मध्यस्थ ) की प्रक्रिया को निभाता है। वहीँ स्टूडेंट्स डायरेक्ट सब्जेक्ट के साथ इंटरैक्ट करते हुए एजुकेशन प्राप्त करता है। किताबों की तुलना में किसी भी टॉपिक का खुली आँखों से परिचय प्राप्त करना एक अलग ही संसार का अनुभव देता है।

लर्निंग बियॉन्ड द क्लासरूम इम्पोर्टेन्ट फॉर स्टूडेंट

लर्निंग बियॉंड द क्लासरूम और लर्निंग आउटसाइड द क्लास रूम वह प्रक्रिया है जिसमे क्लास रूम से बाहर निकल कर जाकर स्टूडेंट्स को वास्तविक जमीनी अनुभव, मुश्किलें, अलग अनुभव और रोमांच से रूबरू कराया जाता है।

हायर एजुकेशन में इंडस्ट्री ओरिएंटेड कोर्सेज और डायरेक्ट इंटरफ़ेस की अवधारणा ने पाठ्क्रमों में बड़े बदलाव किये है। युवाओं को स्किलड बेस्ड एजुकेशन और इंडस्ट्री की डिमांड के अनुसार तैयार करना भी इसका प्रमुख काम रहा है। पिछले कुछ वर्षों में प्रोजेक्ट वर्क-फील्ड सर्वे, इंटर्नशिप, पेड इंटर्नशिप और अप्रेंटिशिप की भूमिका बढ़ी है। इन सभी का मकसद युवा हाथों में हुनर प्रदान करना और उन्हें इंडस्ट्री के माहौल में ढालना है।

झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी ने टेक्निकल और प्रोफेशनल कोर्सेज के अपने करिकुलम को हमेशा अपडेट किया है। इन कोर्सेज के साथ अकादमिया और इंडस्ट्री के बीच के गैप को भरते हुए उसे मार्केट के डिमांड के अनुरूप तैयार किया गया है । टेक्निकल एजुकेशन में बदलावों और इंडस्ट्री की डिमांड को समझते हुए राय यूनिवर्सिटी ने अपने करिकुलम में दोनों का मिश्रण रखा है।

तकनीक के बढ़ते प्रभाव ने इ-लर्निंग को एक बड़े प्लेटफार्म के रूप में पेश किया है। इसके कारण स्टूडेंट्स की विजुअलाइजेशन कैपेसिटी में बड़ी वृद्धि देखि जा रही है। किसी भी स्ट्रीम के स्टूडेंट को अपने सब्जेक्ट को देखने और समझने का एक नया नजरिया मिला है। इसी कड़ी में लैब टू लैंड की अवधारणा ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। वैसे विषय जिनका संबंध अर्थ- फार्म से जुड़ा हुआ है उन्हें लैब्रोटरी से बाहर ले जाकर डायरेक्ट जमीन पर होने वाले बदलावों से अवगत करना है। इन बदलावों को समझते हुए ही सही मायनों में बदलाव लाये जा सकते है।एग्रीकल्चर, केमेस्ट्री, फार्मेसी से जुड़े अध्ययन को धरातल पर उतरना संभव हो पाया है।