राय यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित जनजातीय किसानों के मशरूम प्रशिक्षण का समापन

ICAR- खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन, हिमाचल प्रदेश द्वारा झारखण्ड राय यूनिवर्सिटी, रांची नामकुम कैंपस में दो दिवसीय मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया गया। अनुसूचित जनजाति उपयोजना(2019-2020)के तहत जनजातीय किसानों के लिए इसका आयोजन किया गया था. जिसमें 100 से ज्यादा किसानशामिल हुए।

कार्यशाला के पहले दिन सामूहिक दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुरुवात किया गया जिसमें डीएमआर के वैज्ञानिक डॉ. मनोज नाथ और राय यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार डॉ. पीयूष रंजन शामिल हुए । इस अवसर पर वैज्ञानिक डॉ. नाथ ने “मशरूम और उससे जुड़े प्रशिक्षण के लाभों से किसानो को अवगत कराया और सरकार द्वारा संचालित योजनाओं और प्रशिक्षण के लाभों से भी अवगत कराया।“

रजिस्ट्रार डॉ. पीयूष रंजन ने अपने सम्बोधन के दौरान कहा की “राय यूनिवर्सिटी जनजातीय युवाओं के शैक्षणिक विकास के लिए कार्य करता रहा है। विश्वविद्यालय का एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट भी अपने कार्यों में सामाजिक भागेदारी को बढ़ावा देने में संलग्न है। समय समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करके उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा रहा है। “

मशरूम प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन पर प्रकाश डालते हुए प्रो. हेमलता ने बताया की “मशरूम एक बहुउपयोगी खाद्य है जिसका इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है. उन्होंने विस्तार पूर्वक मशरूम के प्रकार और वर्तमान समय में इसकी उत्पादन तकनीक और महत्व पर प्रकाश डाला।“दूसरे सत्र में रंजीत पाल ने “ऑस्टर मशरूम उत्पादन के तरीके और प्रशिक्षण प्राप्त करते समय बरती जाने वाली सावधानियों पर प्रकाश डाला” ।

कार्यशाला के दूसरे दिन किसानों को व्यावहारिक प्रशिक्षण देने आये डीएमआर वैज्ञानिको रूपम विश्वास और देवज्योति मुखर्जी ने मशरूम उत्पादन करने का व्यावहारिक ज्ञान दिया और किसानों से मशरूम के बैग भी तैयार करवाए। साथ ही बीज, उत्पादन, संवर्धन और प्रसंस्करण से जुडी जानकारी भी प्रदान की। प्रशिक्षण के समापन के बाद सभी किसानों को प्रमाणपत्र और मशरूम उत्पादन से जुडी सामग्री प्रदान की गयी। डीएमआर वैज्ञानिको ने कार्यक्रम के सफल संचालन और मशरूम उत्पादन के लिए आये किसानों की रूचि और लगन की सराहना की और कहा की इस प्रकार के कार्यक्रम अगर दोबारा आयोजित किये जाते है तो वे जरूर शामिल होंगे। कार्यक्रम का आयोजन और सफल संचालन डिपार्टमेंट ऑफ़ एग्रीकल्चर के डॉ. अलोक कुमार ने किया।