Mental Health The Invisible Burden of the Mind - JRU Blog KGK

मानसिक सेहत: मन का अदृश्य बोझ

(विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर विशेष)

मन का बोझ हमारे व्यक्तित्व का एक बड़ा रहस्य है। आजकल सभी लोग अपने शरीर का वजन घटाने में लगे हैं, लेकिन इस बात का हमें ख्याल ही नहीं आता कि शरीर के बोझ के अलावा हमारे मन पर भी, हमारे दिमाग पर भी हमेशा एक बोझ रहता है। जैसे शरीर बीमार होता है, हमारा मस्तिष्क भी बीमार होता या हो सकता है। हर साल की तरह इस वर्ष भी दस अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया गया। इस मौके पर हम बात करेंगे उस वजन की, जो दिखाई नहीं देता लेकिन हमारे जीवन पर, रोजाना की जिंदगी में उसका गहरा असर रहता है। यह वजन कई टन का होता है। कड़वा सच यह भी है कि शरीर की तरह मन का बोझ किसी दवाई से, इंजेक्शन से, किसी वर्कआउट से, जिम से या ट्रेडमिल पर चलने से कम नहीं होता।

कई बार यह बोझ उन लोगों को मानसिक तौर पर बीमार बना देता है जो बाहर से देखने में पूरी तरह फिट दिखते हैं क्योंकि यह बोझ भावनाओं का होता है, डर का होता है,टूटती उम्मीदों का होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) की नई रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में 100 करोड़ से ज्यादा लोग मानसिक स्वास्थ्य (मेंटल हेल्थ) से जूझ रहे हैं। यह हिस्सा वैश्विक आबादी का लगभग 14% है। औसतन दुनिया में हर सात में से एक व्यक्ति किसी ना किसी मानसिक बीमारी का शिकार है। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है, यह एक वैश्विक आपदा है। मानसिक बोझ के भी कई स्तर हैं, उनमें से एक है – एंग्जायटी (बेचैनी) यानी भविष्य की चिंता। यह एक तरह का डर है जो हर पल हमें परेशान करता है कि भविष्य में क्या होगा, कल क्या होने वाला है।

एक आंकड़े के मुताबिक भारत में भी लगभग 20 करोड़ लोग किसी ना किसी मानसिक रोग से संघर्ष कर रहे हैं। इनमें से सिर्फ 10 से 15% लोग ही इसका इलाज करा पाते हैं। हमारे देश में 40 फीसदी युवाओं के लिए, टीनएजर्स के लिए टेंशन (तनाव) और एंग्जायटी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। आज हमें यह समझने की जरूरत है कि हम ही अपने सबसे सच्चे दोस्त हैं लेकिन हम अपने साथ कितना समय बिताते हैं, ज्यादातर लोगों के पास इसका उत्तर ना में होगा। हम भागते जा रहे हैं, रुकने का नाम ही नहीं ले रहे।

मानसिक सेहत को दुरुस्त रखने के लिए एक थेरेपी (चिकित्सा) है, यह है ठहरने की थेरेपी। जरा ठहरिए, जरा रुकिए और कुछ देर कुछ मत कीजिए। यह है कुछ ना करने की थेरेपी। इस इलाज में आपको कुछ नहीं करना और यह सबसे मुश्किल है। बड़ी मुश्किल है कुछ देर के लिए कुछ ना करना, कुछ ना कहना और कुछ ना सोचना। इसे आप एक चैलेंज की तरह लीजिए और वो चैलेंज है कुछ नहीं करने का चैलेंज, कुछ नहीं सोचने का चैलेंज। ना काम, ना बात, ना शोर, बस कुछ देर के लिए अपने साथ बैठिए बिल्कुल चुपचाप। यह सुनने में तो बड़ा आसान लगता है लेकिन यही सबसे मुश्किल है क्योंकि जब शरीर रुकता है तो मन भागने लगता है। लेकिन आज आप रुकिए क्योंकि रुकने का मतलब है खुद से मिलना। यह देखिए कि आपका मन कितनी देर तक ठहर सकता है।

अंत में बोझिल मन से लड़ने के लिए प्रेरित करने वाली कुछ पंक्तियाँ आपके साथ शेयर करता हूं।
हम सिर्फ घटाते हैं अपने शरीर का वजन,
जबकि सैकड़ों टन के बोझ से पिस रहा है हमारा मन।
फोन में सैकड़ों नंबर सजे पड़े हैं,
पर दर्द सुनने वाले कहीं दूर खड़े हैं।
सोशल मीडिया पर दोस्त हैं हजार,
फिर भी मन के भीतर है एक गहरी दरार।
सैकड़ों जख्मों से छिल चुका है मन,
अब कौन लगाए इन घावों पर मरहम।
थाम लीजिए अब अपने मन की डोर,
तभी तो आएगी जिंदगी में एक नई भोर।
शांति से साधिए अपने भीतर का मन, शांति से साधिए अपने भीतर का मन।

ध्यान दें: मानसिक परेशानी के समाधान के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने हेल्पलाइन नंबर्स – 14416 or 1-800-891-4416 भी जारी किये हैं जिन पर आप कॉल कर सकते हैं।

राजन कुमार तिवारी
मनोमय कोश प्रभारी, झारखण्ड राय विश्वविद्यालय, रांची