“कभी-कभी एक प्रश्न ही रास्ता खोल देता है, और उस पर चलने की जिज्ञासा जीवन बदल देती है।”
मेरी यह यात्रा भी एक ऐसे ही प्रश्न से शुरू हुई — “कंप्यूटर विज्ञान जैसे आधुनिक विषय से, क्या वाकई मैं हजारों वर्षों पुरानी भारतीय ज्ञान प्रणाली को जोड़ सकता हूँ?”
जब मुझे पहली बार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू.जी.सी.) द्वारा आयोजित 6-दिवसीय भारतीय ज्ञान प्रणाली के प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर मिला, मन में उत्साह तो था, लेकिन साथ ही शंका भी थी।
एक ओर भारतीय ज्ञान प्रणाली — ऋषियों की गहराई से उपजी वह विरासत, जो वेदों, गणित, खगोल, दर्शन, साहित्य, नृत्य और आयुर्वेद से समृद्ध है; और दूसरी ओर कंप्यूटर विज्ञान — आज की डिजिटल क्रांति का सबसे प्रमुख स्तंभ। दोनों के बीच की दूरी मुझे शुरुआत में असंभव-सी लगी। लेकिन जैसे-जैसे प्रशिक्षण आगे बढ़ा, मेरी सोच बदलने लगी।
6 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में जैसे ही मैंने भारतीय गणित पर आधारित सत्रों को ध्यानपूर्वक सुना, मेरी दृष्टि में परिवर्तन हुआ। मैंने जाना कि हमारे देश ने न केवल शून्य और दशमलव की खोज की, बल्कि गणना की विधियाँ, बीजगणित, त्रिकोणमिति, और खगोलगणित में भी अमूल्य योगदान दिया है।
आर्यभट्ट ने जिस खगोलगणित की नींव रखी, वह आज भी उपग्रहों की कक्षा निर्धारण में उपयोगी है।
पिंगलाचार्य के छंदशास्त्र में द्विआधारी गणना (द्वि-कोड प्रणाली) की झलक है, जिसे आज का कंप्यूटर विज्ञान अपनी नींव मानता है।
भास्कराचार्य की लीलावती पुस्तक में गणितीय अवधारणाएँ इतनी सरल भाषा में प्रस्तुत हैं कि वे आज के आधुनिक शिक्षण मॉडल से कहीं अधिक प्रभावी प्रतीत होती हैं।
मैं चकित था — क्या ये वही अवधारणाएँ हैं जिन पर आज कंप्यूटर विज्ञान और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के तर्क-आधारित तंत्र कार्य करते हैं?
इस प्रशिक्षण के पश्चात, मुझे भारत भर से चुने गए लगभग 1000 प्रतिभागियों में से मुख्य प्रशिक्षक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह मेरे लिए केवल सम्मान नहीं, बल्कि उत्तरदायित्व भी था — एक ऐसा उत्तरदायित्व, जो इस विरासत को केवल समझने का नहीं, बल्कि इसे आज की शिक्षा प्रणाली और तकनीकी क्षेत्र से जोड़ने का था।
इसके पश्चात मुझे “गणित” विषय पर केंद्रित विषय-विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर मिला, जिसने मेरी सोच को और भी वैज्ञानिक, सुसंगत और गहराई से जुड़ा हुआ बना दिया।
अब सवाल यह था — मैं कंप्यूटर विज्ञान से होने के नाते भारतीय ज्ञान प्रणाली को कैसे जोड़ सकता हूँ?
और यहीं पर मुझे उत्तर मिले — गणित और कंप्यूटर विज्ञान के बीच उस अदृश्य पुल की खोज, जो सदियों पहले हमारे ऋषियों द्वारा स्थापित किया गया था।
भारतीय गणित और कंप्यूटर विज्ञान के सेतु
- क्रमविधि (एल्गोरिदम) और भारतीय ज्ञान प्रणाली:
पिंगलाचार्य द्वारा प्रतिपादित छंद विन्यास में ‘लघु’ और ‘गुरु’ की गणना वास्तव में द्विआधारी कोडिंग (0 और 1) जैसी है। - पुनरावृत्ति विधियाँ (रीकरिंग मैथड्स) और चक्रवाल पद्धति:
भास्कराचार्य की चक्रवाल विधि आज के आवर्तक क्रमविधि (इटरेटिव एल्गोरिदम) जैसी ही है। - फ्रैक्टल पैटर्न और मंदिर वास्तुकला:
भारतीय मंदिरों की संरचना में प्रयुक्त गणितीय पैटर्न, आज के संगणक ग्राफ़िक्स और डिज़ाइनिंग में प्रयुक्त “स्वरूप ज्यामिति” (फ्रैक्टल ज्योमेट्री) से मिलते हैं। - डेटा वर्गीकरण और नवरस सिद्धांत:
भारतीय सौंदर्यशास्त्र में वर्णित ‘नवरस’ की प्रणाली, आज की भावनात्मक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (ए.आई.) मॉडलिंग में उपयोगी हो सकती है।
अर्थात् भारतीय ज्ञान प्रणाली, कंप्यूटर विज्ञान से केवल जुड़ती नहीं है — वह उसमें नव दृष्टिकोण, संवेदनशीलता, और भारतीयता का समावेश करती है।
आज मैं गौरव से कह सकता हूँ कि मुझे देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, और शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों में भारतीय ज्ञान प्रणाली विषय पर सत्र लेने का अवसर मिल रहा है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग–शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाएँ
- शिक्षकों के विकास कार्यक्रम (FDP.)
- विषय-विशिष्ट अभिमुखीकरण सत्र
- भारतीय ज्ञान प्रणाली जागरूकता एवं एकीकरण अभियान
इन सत्रों में मैं न केवल गणित और कंप्यूटर विज्ञान के शिक्षकों को प्रशिक्षण देता हूँ, बल्कि उन्हें यह विश्वास भी दिलाता हूँ कि भारतीय ज्ञान प्रणाली न केवल प्रासंगिक है, बल्कि अनिवार्य भी — यदि हम एक आत्मनिर्भर, मूल्यों पर आधारित, और नवाचार से परिपूर्ण शिक्षा प्रणाली चाहते हैं।
मेरी यह यात्रा बताती है कि प्राचीनता का अर्थ जड़ता नहीं होता, और आधुनिकता का अर्थ परंपरा से विमुख होना नहीं होता। यदि हम ध्यानपूर्वक देखें, तो भारतीय ज्ञान प्रणाली और कंप्यूटर विज्ञान के बीच गहरा तात्त्विक और व्यवहारिक संबंध मौजूद है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम इस ज्ञान को पुनः अपने शिक्षण, अनुसंधान और नवाचार में समाहित करें — तभी हम सच्चे अर्थों में “भारत को ज्ञान-विज्ञान की विश्वगुरु परंपरा से जोड़ने” की दिशा में आगे बढ़ पाएँगे।
लेखक:
डॉ. कुमार अमरेन्द्र
संकाय सदस्य, कंप्यूटर विज्ञान एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, झारखंड राय विश्वविद्यालय, रांची
मुख्य प्रशिक्षक, भारतीय ज्ञान प्रणाली, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, शिक्षा मंत्रालय