आज सुबह गूगल कैलेंडर में (10 सितंबर पर ) लिखी पंक्ति “नेवर गिव अप यू कैन फ्लाई ” ने मेरा ध्यान खिंचा। आज का दिन वर्ल्ड सुसाईड प्रिवेंशन डे के तौर पर मनाया जाता है। हार नहीं मानना और हमेशा संघर्ष रत रहना जीवन है। जीवन के इस मूल भाव को नहीं समझने वाले ही आत्महत्या जैसे कायराना कार्य की तरफ सोचते है।
एक ऐसा ही उदहारण है मुंबई में रहने वाले 21 साल के यश अवधेश गांधी । ज़िंदगी की मुश्किल चुनौतियों का सामना करते हुए यश ने मैनेजमेंट की प्रवेश परीक्षा कैट में 92.5 अंक लाकर न केवल अपने माता पिता का नाम रोशन किया बल्कि कई युवाओं के लिए मिसाल बन गए। इनका एडमिशन आईआईएम लखनऊ में हुआ है जहां पहुंचना बहुतेरे छात्रों का सपना होता है। यश की कहानी इसलिए प्रेरणादायक है क्योंकि वे सेरेब्रल पॉल्सी और डिस्लेक्सिया जैसी बेहद गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं. लड़खड़ा कर चल पाते हैं लेकिन हौसले को लेकर उनके क़दम नहीं लड़खड़ाए।
मुश्किलों के बाद भी यश ने की तैयारी की और उन्हें लिखित परीक्षा देने के लिए एक राइटर की ज़रूरत होती है, वह ख़ुद अपना पेपर नहीं लिख सकते।
सेरेब्रल पॉल्सी और डिस्लेक्सिया ऐसी स्थिति को कहते हैं जिसमें शरीर की ज़रूरी मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं।यश ने अगर हार मानकर अपनी जिन्दी को गुड़ बॉय बोल दिया होता तो वह एक मिशाल नहीं बन पाते ।
फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह की मौत ने फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है की सफलता का पैमाना क्या है ? संघर्ष और असफलता का रास्ता क्या इस ओर जाता है ?
हमारे सामने कितने ही उदाहरण है जिन्होंने जीवन के सुरवती वर्षों में लगातार असफलता ही प्राप्त किया लेकिन हार नहीं मानी अपने हाथों से अपनी सफलता की लकीर खींची।
आत्महत्या शब्द जीवन से पलायन का डरावना सत्य है जो दिल को दहलाता है, डराता है, खौफ पैदा करता है, दर्द देता है। इसका दंश वे झेलते हैं जिनका कोई अपना आत्महत्या कर चला जाता है। कितने ही युवा संघर्ष से घबरा कर आतमहतया की तरफ मुड़ जाते है क्या यह समाधान है ?
भारतीय मानस पहले इतना कमजोर कभी नहीं था जितना अब दिखाई पड़ रहा है। कम सुविधा व सीमित संसाधन में भी संतोष और सुख से रहने का गुण इस देश की संस्कृति में रचा-बसा है ।